Friday 15 August, 2008

आकर्षण


ऐसा सृष्टि के जन्म से ही हो रहा है निरंतर,
अनगिनत पुरूष समा जाते हैं गर्त में,
सिर्फ़,स्त्री उपभोग की लालसा लिए,


क्या ये इतना अधिक आनंदमयी है,
जो तोड़ देता है,समस्त आचारों के बंधन?

नहीं, मैं समझता हूँ,
ओठों, उभारों और कटिप्रदेशों के दोहन से,
कहीं अधिक महत्वपूर्ण है उसी छुअन,
उसे गहरे से हर बार देखने को करता मन,
जो प्रत्येक काया में करता है,
नित नया रूप धारण,

और यही है,सिर्फ़ यही है,
स्त्री देह की अभिलाषा का आकर्षण!


अनीस

No comments: