हमेशा, ज़िन्दगी में क्यूँ नहीं होता सब करीने से
ज़िन्दगी हमेशा करीने से क्यूँ नहीं होती,
कुछ सुलझती हुई उलझने, फ़िर कुछ उलझती हुई सुलझने
लगता है अंधेरे का निकल गया है अब बल
फ़िर नज़र आता है रौशनी का छल,
आखों में है खवाब रेत के महलों के, और मुट्ठी में है रेत फिसलती हुई
कभी लगता है हौसला कम है, तो कभी वक्त कम,
जिस सूरज से सबक लेकर जागा था सुबह
कदम बढाये, उसे डूबता पीछे पाया है,
कहीं अकेलेपन से जंग,तो कहीं रिश्तों के बेमानी होने का गम
कुछ उम्मीदें कुछ ख्वाइशें, चलता रहा हरदम,
रास्ते देते हैं दगा,मंजिल है उनकी पुरानी दुश्मन
कुछ अनछुई खुशियाँ,कुछ अधूरी रातें
कभी कुछ करने के लिए जीना,कभी जीने के लिए करना कुछ काम,
ज़िन्दगी क्या है,बस दो घटा दो, सब बराबर,
कहने को तो ये अपनी है,पर कहाँ मिलता है इसमें अपनी मर्ज़ी का सब कुछ,
जो मिला अच्छा सब उसका*,जो हुआ बुरा वो सब हमारे करम,
सब कुछ बिखरा हुआ ,सारा अस्त-व्यस्त,
ये ज़िन्दगी,हमेशा करीने से क्यूँ नहीं होती!!!!
अनीस
3 comments:
GGGKLLKGKL
test mail
kya baat hai.
badhai ho
khyaal
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